लेखनी प्रतियोगिता -28-Dec-2022 बनारस का घाट
अमर हर वर्ष कार्तिक मास का स्नान करने अपनी मां और दादा जी के साथ बनारस के घाट पर जाता था। और सुलोचना के साथ शादी होने के बाद सुलोचना भी उनके साथ बनारस घाट स्नान करने हर वर्ष जाने लगी थी।
कार्तिक मास का स्नान आने वाला था। अमर अकेला कमरे में बैठकर कार्तिक मास के स्नान की पुरानी यादों में खोया हुआ था। जब वह अपनी मां दादा जी सुलोचना के साथ बनारस घाट पर कार्तिक मास का स्नान करने जाता था।
उसी समय अमर का बेटा और बेटी कॉलेज से घर वापस आते हैं और अपने पिता अमर को अकेला उदास चुपचाप बैठा देखकर उससे उदासी का कारण पूछते।
अमर बनारस के घाट की कुछ खूबसूरत सुनहरी यादों के बारे में अपने बच्चों को भी बताता है। बनारस घाट की ऐसी खुशियों की बातें सुनकर बच्चों को बहुत ही अच्छा लगता है।
अमर की बातें सुनकर दोनों बच्चों के मन में भी इच्छा प्रबल हो जाती है, बनारस घाट पर स्नान करने की। लेकिन अमर उदास मन से बच्चों को बनारस घाट जाने की मना कर देता है। लेकिन वह बच्चों को उदास नहीं करना चाहता, इसलिए दूसरे दिन सुबह ही बनारस घाट जाने वाली बस पकड़ लेता है।
बनारस के बस अड्डे पर पहुंचने के बाद, सबसे पहले अमर बच्चों के साथ उसी बेंच पर जाता है जहां उनकी मां सुलोचना से उसकी पहली मुलाकात हुई थी। और अमर उस बेंच पर बैठकर पुरानी यादों में खो जाता है।
अमर को चुपचाप खोया हुआ देखकर बच्चे इसका कारण पूछते हैं तो अमर दोनों बच्चों को बताता है कि इसी बेंच पर मैं दादा जी और मां के साथ बनारस घाट जाने वाली बस का इंतजार कर रहा था, उसी समय तुम्हारी मां सुलोचना अपनी बुआ जी के साथ आकर इस बेंच पर बैठ गई थी।
सुलोचना की बुआ बहुत ही हंसमुख थी। सुलोचना और उसकी बुआ भी बनारस घाट ही जा रहे थे स्नान करने।
मुझे और दादाजी को तेज भूख लग रही थी। हमें पता था मां जब भी सफर में जाती है तो खाना जरूर साथ लेकर जाती है जैसे पूरी आलू की सब्जी दही अचार हलवा।
मैंने जैसे ही बेंच के पास खाना खाने के लिए दरी बिछाई, तो सुलोचना की बुआ भी अपना खाना खोलकर हमारे साथ खाना खाने बैठ गई। हम सब ने मिलकर ऐसे खाना खाया जैसे हम एक ही परिवार के सदस्य हो।
सुलोचना की बुआ बातों बातों में बताती है कि "सुलोचना मेरी भतीजी है और मेरा एक बेटा और बहू है। सुलोचना कि पढ़ाई पूरी हो गई है, अब मैं इसके लिए एक अच्छे परिवार का लड़का ढूंढ रही हूं। जैसे तुम्हारा बेटा संस्कारी और समझदार है ऐसा ही लड़का में सुलोचना के लिए देख रही हूं।"
अमर फिर बच्चों को बताता है कि "दादाजी और मां ने भी सुलोचना की बुआ से कहा कि हमें भी तुम्हारी भतीजी सुलोचना जैसी ही घरेलू और समझदार लड़की अमर के साथ शादी करने के लिए चाहिए।और सब जब आपस में बातें कर रहे थे उसी समय बनारस घाट जाने वाली बस आ गई थी।
हम सब उसी बस में साथ में बनारस घाट पहुंचे थे। और स्नान करने के बाद फिर हम सब एक चाय की दुकान पर चाय पीने बैठ गए थे। और उस दिन दादाजी मां और सुलोचना की बुआ ने सुलोचना मेरी रजामंदी पता करके उसी दिन उस चाय की दुकान पर हम दोनों की शादी पक्की कर दी थी। फिर 6 महीने बाद हम दोनों शादी के बंधन में बंध गए थे। सुलोचना की बुआ साल 6 महीने में जरूर सुलोचना और हम से मिलने घर आती थी और अपने साथ हमारे खाने के लिए देसी घी आदि गांव की चीजें लाती थी। जब भी सुलोचना की बुआ घर आती थी तो घर में रौनक हो जाती थी और उनके जाने के बाद घर सुनसान हो जाता था। तुम दोनों के जन्म के बाद मां दादाजी सुलोचना की बुआ सुलोचना और मेरे जीवन में खुशियां आ गई थी।
हमारे जीवन में चारों तरफ से खुशियां ही खुशियां आ रही थी लेकिन अचानक एक दिन सुलोचना के गांव से खबर आती है कि सुलोचना की बुआ का देहांत हो गया। समय के बीतने के साथ-साथ पहले दादा जी का स्वर्गवास हुआ फिर मां का और एक दिन अचानक सुलोचना की भी मृत्यु हो गई।"
बच्चों को अपने जीवन की पुरानी यादें सुनाते सुनाते अमर की आंखों से आंसू टपकने लगते हैं। और उसी समय बनारस के घाट जाने वाली बस आ जाती है। और अमर बच्चों के साथ बस में बैठ जाता है। मां सुलोचना और पिता अमर की पहली मुलाकात बच्चों के जीवन की यादगार सच्ची कहानी बन जाती है।
आँचल सोनी 'हिया'
05-Jan-2023 04:36 PM
Good
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सीताराम साहू 'निर्मल'
29-Dec-2022 05:05 PM
बेहतरीन
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Varsha_Upadhyay
29-Dec-2022 02:44 PM
Nice 👍🏼
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